एड्स

लाल फीता: उपार्जित प्रतिरक्षी  अपूर्णता सहलक्षण का अंतर्राष्ट्रीय चिह्न {| style="float: right; clear:right; margin: 0 0 0.5em 1em; padding: 0.5em; background: #fffff4; border: 1px solid #ddb; width: 250px; font-size:90%;" |- |उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण संबंधित लघुनाम
AIDS: उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण
HIV: मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाण
CD4+: CD4+ टी सहायक कोशिकाएं
CCR5: चेमोकिन (C-C मोटिफ़) रिसेप्टर ५
CDC: रोग रोकथाम एवं निवारण केंद्र
WHO: विश्व स्वास्थ्य संगठन
PCP: न्यूमोसिस्टिस निमोनिया
TB: तपेदिक
MTCT: मां-से-संतान प्रसार
HAART: उच्च सक्रिय एंटीरिट्रोवियल चिकित्सा
STI/STD: यौन प्रसारित संक्रमण/रोग |} उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण (एड्स) (अंग्रेज़ी:acquired immunodeficiency syndrome (aids)) मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (मा॰प्र॰अ॰स॰) (एच॰आई॰वी) संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है, पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एच.आई.वी (वह वायरस जिससे कि एड्स होता है) रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आक्रमण करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। एच.आई.वी. संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में ८ से १० वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक बिना किसी विशेष लक्षणों के बिना रह सकते हैं।

एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यानी कि यह एक महामारी है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं - असुरक्षित यौन संबंधो, रक्त के आदान-प्रदान तथा माँ से शिशु में संक्रमण द्वारा। [https://web.archive.org/web/20070312184838/http://www.nacoonline.org/ राष्ट्रीय उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण नियंत्रण कार्यक्रम] और [https://web.archive.org/web/20130526040247/http://www.unaids.org/] संयुक्त राष्ट्रसंघ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण] दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में ८० से ८५ प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलिंगी/विषमलैंगिक यौन संबंधों से फैल रहा है। माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु: एच.आई.वी, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। १९८१ में एड्स की खोज से अब तक इससे लगभग ३० करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं। विकिपीडिया द्वारा प्रदान किया गया
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